Sr. No | Article Title | Author Name |
1 |
कविता |
राजश्री देशपांडे |
2 |
कविता |
तुकाराम खिल्लारे |
3 |
विदर्भातील स्त्री-लेखन |
अरुणा सबाने |
4 |
नव्वदनंतरची आंबेडकरी कविता |
शिवराज गोपाळे |
5 |
बदलाची दिशा |
सुधीर वाडेकर |
6 |
केंद्र सरकारचा जुगार |
शेखर सोनाळकर |
7 |
अयोध्या व ‘मोदीमॉन इफेक्ट’ |
अर्जुन अप्पादुराई |
8 |
विषम तडजोडीतून शांतता |
सुहृत पार्थसारथी व गौतम भाटिया |
9 |
विषम तडजोडीतून शांतता |
सुहृत पार्थसारथी व गौतम भाटिया |
10 |
अंत नव्हे, अंमळ अवसर |
सुहास पळशीकर |
11 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
12 |
संविधानिक नैतिकतेचे काय? |
नितीश नवसागरे |
13 |
इष्ट आदरांजलीपर स्मृतिग्रंथ |
कुंदा लोखंडे व बाळासाहेब कांबळे |
14 |
अमेरिकेतील स्त्रीवाद : शोध व बोध |
स्नेहा गोळे |
15 |
गोरखचं मरणं - आमचा मायदेश कोणता? |
नारायण भोसले |
16 |
या सततच्या दुष्काळाचे करायचे काय? |
संपत काळे |
17 |
भटक्या जमाती व जमातवाद |
इनायत परदेशी |
18 |
एनआरसीतील लिंगजन्य भेदभाव |
अनन्या सिंग |
19 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
20 |
पिंजरा : प्रेमपटच! |
जयश्री आवदे |
21 |
बिबट्या! |
विनायक लष्कर |
22 |
कैरोतील अरब वसंत ऋतू |
माधव दातार |
23 |
‘आपली’ ग्रेटा आणि पुष्पपठार कास |
अजित साळुंखे |
24 |
कारसंस्कृती आणि सार्वजनिक अवकाश |
विद्याधर दाते |
25 |
नागरिकत्व दुरुस्ती कायद्याचा निषेध |
Jayant Pawar |
26 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
27 |
राज्यसंस्था आणि हिंसा |
Watsaru Edit |
28 |
भवतालातील भय अधोरेखित… |
सीमा मुसळे |
29 |
अर्वाचीन कवींचा काव्यविचार |
विजय रैवतकर |
30 |
रांड / छपाक समयी दिनचर्या |
अनुपमा तिवाडी, मोहन देस |
31 |
एक रेष आखलेली |
प्रज्ञा दया पवार |
32 |
कारसंस्कृती आणि सार्वजनिक अवकाश |
विद्याधर दाते |
33 |
अखेर विद्यार्थी का संतापले? |
सतीशकुमार पडोळकर |
34 |
नव्या संकटाची नांदी |
विजय दिवाण |
35 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
36 |
प्रतिकूलतेला चटके देण्याची हीच वेळ |
Narayan Bhosale |
37 |
नदीष्ट : लिव्हिंग ऑरगॅनिझम |
यामिनी दळवी |
38 |
कविता |
सचिन गरुड, फैज अहमद फैज रूपांतर निमिष साने, अरुणचंद्र गवळी, भूषण रामटेके |
39 |
कहाणी मेंढा नि पाचगावची |
पुरुषोत्तम चांदेकर |
40 |
मराठा स्त्रियांचे हिंदुत्व भान |
मीनल जगताप |
41 |
देऊरचा प्रतिकार आणि जातिसमाजाचा कॉमन सेन्स |
उमेश बगाडे |
42 |
नागरिकत्वविषयक दुरुस्तीचे वास्तव |
सुहास पळशीकर |
43 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
44 |
विकासनीतीची कठोर चिकित्सा |
अनंत फडके |
45 |
काव्यान्तर |
भारती गोरे |
46 |
स्त्री-पुरुष विषमता भारत व बांगला देश |
सुरेंद्र जाधव |
47 |
देऊरचा प्रतिकार आणि जातिसमाजाचा कॉमन सेन्स |
उमेश बगाडे |
48 |
नागरिकत्वविषयक दुरुस्तीचे वास्तव |
सुहास पळशीकर |
49 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
50 |
शाहीनबागच्या दिग्दर्शक महिला |
Madhuri Dixit |
51 |
शंकरभाऊ साठेंच्या चरित्राच्या निमित्ताने |
रामप्रसाद तौर |
52 |
मुक्तीच्या सम्यक मार्गावर |
सरिता सोमाणी |
53 |
हमरस्ता नाकारूनही पथदर्शी |
स्वातीजा मनोरमा |
54 |
खडकांच्या पोटात |
सुनीती धारवाडकर |
55 |
कविता |
नीलिमा श्रुतिश्रवण |
56 |
रांगेत उभंच नसलेलं बाईमाणूस |
रोचना मोरे |
57 |
दुर्लक्षित समाजशास्त्रज्ञ : कमला भसीन |
संदीप चौधरी |
58 |
पहिलं पाऊल |
मुक्ता मनोहर |
59 |
स्त्रीकाव्याच्या आकलनाची चिकित्सा |
कल्याणी झा |
60 |
मूलतत्त्ववाद, जमातवाद आणि स्त्रिया |
वंदना पलसाने |
61 |
तिढा पॅलेस्टाईनचा |
कल्पना दीक्षित |
62 |
पुन्हा ८ मार्च! |
Vrushali Magdum |
63 |
विस्थापनाच्या कविता |
Rishikesh Gangadharrao Deshmukh |
64 |
विकासनीतीची कठोर चिकित्सा |
अनंत फडके |
65 |
काव्यान्तर |
भारती गोरे |
66 |
महंमद खडस आणि समाजवादाचे स्वप्न |
गजानन खातू |
67 |
अभ्यासक कार्यकर्ता |
माधव दातार |
68 |
कोण होता कोलंबस? |
मुक्ता मनोहर |
69 |
रात्रंदिन आम्हा युद्धाचा प्रसंग |
सुनीती धारवाडकर |
70 |
सरकारविरोधी आंदोलने नि नागरिकांची जबाबदारी |
सुहास पळशीकर |
71 |
इपीडब्ल्यूची पानं |
EPW Edit |
72 |
जीवनचिंतनाचे नाटय |
माधव पुटवाड |
73 |
प्रांजळ आत्मकथन |
नागनाथ कोत्तापल्ले |
74 |
लैंगिकतेचा नवअध्यात्मवादी, समतावादी दृष्टिकोन |
शरद नावरे |
75 |
पाहुणा |
सिद्राम पाटील |
76 |
कोलंबसचं अमेरिका कनेक्शन |
मुक्ता मनोहर |
77 |
भाईसाब, बेहेनजी आणि लक्स कोझी |
अवधूत डोंगरे |
78 |
शहरे आणि बदलते सांस्कृतिक आयाम |
प्रशांत आपटे |
79 |
मृदंगाचं मर्म नि वादकांचा धर्म |
टी. एम. कृष्णा |
80 |
कोरोना - स्वगते (कविता) |
प्रदीप पुरंदरे |
81 |
कोरोना एकटा आला नाही |
विराज पवार |
82 |
कोरोनानोंदी |
संजीव चांदोरकर |
83 |
कोरोनॉमिस्क व्यत्ययाचे अर्थशास्त्र |
मंजूषा मुसमाडे |
84 |
किती दिवस सोसायची ही घोर नाकेबंदी ? |
संपादकीय |
85 |
तर्कतीर्थांची साहित्यसंपदा |
हिंदुराव पवार |
86 |
दलित अभिव्यक्ती पल्याडची कविता |
अंकुश कदम |
87 |
संत कविता नि दलित जाणीव |
नीता तोरणे |
88 |
मोहल्ल्याच्या अस्तित्वाची पालवी ओरबाडताना |
अजीम राही |
89 |
कुलुपबंदीची वेळ |
प्रज्ञा पवार |
90 |
विज्ञानाची प्रशस्त वाट |
सुनीती धारवाडकर |
91 |
देशाची श्रीमंती कशात? |
मुक्ता मनोहर |
92 |
दारा शुकोहचा सुफी वारसा |
सरफराज अहमद |
93 |
रफिक झकारिया: राष्ट्रवादी विचारवंत |
रशिद जिलानी सय्यद |
94 |
सीएएविरोधी आंदोलन आणि परशुराम |
नारायण आशा आनंद |
95 |
कोरोनानोंदी |
संजीव चांदोरकर |
96 |
अर्थव्यवस्थेवरील परिणाम |
संजय तुपे |
97 |
कोरोनाविरुद्ध लढाईत 'आयुष' |
अंबुजा साळगावकर |
98 |
कोरोनापर्व : काही विचार |
सुकुमार शिदोरे |
99 |
...तुम्ही नक्की बोलू लागाल |
आनंद तेलतुंबडे |
100 |
कोरोनाचा 'सुवर्ण क्षण' |
संपादकीय |
101 |
भवतालाचे टक्क जागेपण जपणारी कविता |
सरिता सोमाणी |
102 |
आस्तिन के सॉंप |
लखनसिंह कटरे |
103 |
अस्वस्थ कविता |
शशिकांत हिंगोणेकर |
104 |
टाळाबंदी नी.... |
सुनिता झाडे |
105 |
जगण्याच्या शर्यतीत जीवाच्या आकांतानं |
संघमित्रा खंडारे |
106 |
एक एक पान गळताना |
सुनिता डागा |
107 |
शून्य भय |
सारिका उबाळे |
108 |
एक विधान |
मिथुनचंद्र चौधरी |
109 |
चिकाच्या आरशाआड..... |
मेघनाथ कुलकर्णी |
110 |
परिवर्तन व साहित्य |
रमाकांत कराड |
111 |
देशात वसाहतवाद्यांची वापसी? |
मीनल कुष्टे |
112 |
इंग्लंड आणि राणी एलिझाबेथची एंट्री |
मुक्ता मनोहर |
113 |
कोरोना आणि जागतिक भांडवली अरिष्ट |
बी. युवराज |
114 |
पॅंडेमिक : नव्या भारताचा उदय? |
मिलींद कीर्ती |
115 |
कोरोना आणि घरेलू कामगारांची सद्यस्थिती |
मनेष खटावे |
116 |
ॲलोपॅथी आयुषवैद्यक आणि नीरक्षीरविवेक |
अंबुजा साळगावकर |
117 |
मानवमुक्तीचे स्वप्न |
भारत पाटणकर |
118 |
कोरोनापर्व : काही विचार |
वृषाली मगदूम |
119 |
शिक्षणाच्या परीक्षेची घडी |
माधुरी दीक्षित |
120 |
शिक्षणव्यवस्थेसमोर नवी आव्हाने |
संपादकीय |
121 |
आलेख |
अरुणचंद्र गवळी |
122 |
खरोखरच... मला लाज वाटते |
लोकनाथ यशवंत |
123 |
नितळ, पारदर्शक स्वकथन टिपंवणी |
आशालता कांबळे |
124 |
भारतीय भाषांसमोरील समस्या व भवितव्य |
नीतिन आरेकर |
125 |
इंग्लंडची सरशी व नागरी वसाहतींचा आरंभ |
मुक्ता मनोहर |
126 |
कोव्हिड १९चा अभियांत्रिकी शिक्षणावर परिणाम |
प्रियांका कुलकर्णी |
127 |
शिक्षणाच्या परीक्षेची घडी |
माधुरी दीक्षित |
128 |
भारत व चीन यांच्या विकासाचे वास्तव |
चंद्रकांत केळकर |
129 |
जागतिक आरोग्य संघटनेचे योगदान |
सुधीर वाडेकर |
130 |
अमेरिकेचे घातक वंशवादी प्रारूप |
महादेव खुडे |
131 |
व्हिएतनामचे यशस्वी प्रारूप |
अजित साळुंखे |
132 |
साखर उद्योग आणि कोरोना |
सतीश देशमुख |
133 |
जागतिकीकरणावर प्रश्नचिन्ह |
देवीदास तुळजापूरकर |
134 |
कोरोनाचे संभाव्य आर्थिक परिणाम आणि दिशा |
समित माहोरे |
135 |
कोरोनानंतरची अर्थव्यवस्था |
श्रीनिवास खांदेवाले |
136 |
चेकपोस्टच्या पोस्ट |
विठ्ठल पांडे |
137 |
कोरोना आणि पायी चालणार |
संपादकीय |
138 |
एक मे रोजीच्या कव्हरसंबंधी |
अवधूत डोंगरे |
139 |
अभिव्यक्ती स्वातंत्र्याच्या पुरस्कारासाठी |
गणेश राऊत |
140 |
गूढ वास्तव कथा |
प्रभू राजगडकर |
141 |
कोरोना बिन बलायो पामणो |
संतोष राठोड |
142 |
स्वप्नांचे बांधकाम करणारा कवी |
अरुण तीनगोटे |
143 |
मे- फ्लॉवर बायबल आणि नव्या जगाकडे... |
मुक्ता मनोहर |
144 |
स्मार्टफोनची जैवकंपने |
सुनीती धारवाडकर |
145 |
1920ची बहिष्कृत वर्ग परिषद |
सुरेश साबळे |
146 |
आदिवासीची कुंपणबंदी |
मुक्ता आंभेरे |
147 |
शिक्षनाचे झूम बराबर |
भवानी शंकर नायक |
148 |
मजूरवेणा २६ जुलैपर्यंत ते आपल्याखिजगणतीतही नव्हते... |
पी. साईनाथ |
149 |
सावध ऐका... |
डॉ. सचिन सरोदे |
150 |
पत्रव्यवहार |
सचिन गरुड |
151 |
दखलपात्र 'मुनादी' |
किरण डोंगरदिवे |
152 |
भारतीयत्वाच्या जाणिवेचा वेदनादायी पुनर्शोध |
अविनाश वर्धन |
153 |
रस्ते वेदनेनं विव्हळत आहेत |
अशोक इंगळे |
154 |
मजुरांच्या कविता : काही तुकडे |
तुषार पाटील |
155 |
कबीरन |
सूरज बडत्या |
156 |
माणूस मूलतः अविवेकीच असतो! |
रावसाहेब कसबे |
157 |
सीटी अपॉन हिल |
मुक्ता मनोहर |
158 |
सम्यक ध्वनी |
संजय मोहड |
159 |
पितृसत्त्तेच्या विळख्यात कुटुंबव्यवस्था |
प्रवीण घोडेस्वार |
160 |
अभिजन उदारमतवादी व फॅसिझम |
बी युवराज |
161 |
विधान परिषद निवडणुकीच्या निमित्ताने |
संतोष कायंदे |
162 |
वर्गखोल्यांची विलापिका |
मीना पिल्लई |
163 |
शैक्षणिक संकुलाचे महत्त्व |
सतीश देशपांडे |
164 |
दोन हात या विषाणूशी पण करुयात |
सुप्रिया गायकवाड |
165 |
बाबुरावाचा तुकडा |
अविनाश गायकवाड |
166 |
गंगामायचं निवेदन |
मनोहर जाधव |
167 |
तेव्हाची गोष्ट |
स्मिता पाटील |
168 |
रानडे आणि भांडारकर : काही नवे पैलू |
जास्वंदी बांबूरकर |
169 |
मिडल कॉलनीज अशा कशा मध्येच? |
मुक्ता मनोहर |
170 |
निद्रेचे लयबद्ध आवर्तने : झोपेचे जैवचक्र |
सुनीती धारवाडकर |
171 |
प्रवेग : प्रवेगवादी राजकारणाचा जाहिरनामा |
विप्लव आनंद विंगकर |
172 |
कोरोना व सार्वजनिक विवेकाचा सत्वभ्रंश |
हर्षद भोसले |
173 |
21 व्या शतकातील भांडवली पद्धती, अरिष्टे, व कारणमीमांसा |
चंद्रकांत केळकर |
174 |
पितृसत्ताक मानसिकतेतून घडलेली एकतर्फी प्रेमातील हिंसा |
स्वर्णमाला मस्के |
175 |
कोरोनाच्या काळात घ्यावयाची काळजी |
संपादकीय |
176 |
मानवी नात्याचे प्रभावी चित्रण करणाऱ्या कथा |
रंजना वांबुरकर |
177 |
इम्तियाज धारकर यांची कविता.... |
दीपक बोरगावे |
178 |
योगिनी राऊळ यांच्या कविता |
योगिनी राऊळ |
179 |
पर्व गुलामगिरीचे - कोण वीस माणसं?.. |
मुक्ता मनोहर |
180 |
याद रहे हमे बिमारी से लडना हैं |
विठ्ठल पांडे |
181 |
ऑनलाईन शिक्षणात स्त्रियाच वंचित? |
प्रवीण घोडेस्वार |
182 |
आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार |
दिलीप चव्हाण |
183 |
कोरोनाचा काळ नि नवऱ्याचा भार |
अनामिका 2 |
184 |
नवऱ्यासोबत लॉक झालेल्या डाऊन बायका.... |
अनामिका 1 |
185 |
अंधारातली दुसरी महामारी |
संपादकीय |
186 |
कोव्हिड १९ आणि लिंगभाव : कोरोनाने उघडली झाकली मूठ |
स्वातीजा मनोरमा |
187 |
पावसाच्या निबंधातून वाहून गेलेली गोष्ट |
महेंद्र लंकेश्वर |
188 |
निसर्गाचे मूलभूत धडे |
सुनीती धारवाडकर |
189 |
गुलामगिरीच्या मजबूत साखळ्या |
मुक्ता मनोहर |
190 |
आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार |
दिलीप चव्हाण |
191 |
कुटुंबाचे चिकित्सक समाजशास्त्र विस्तारताना |
मयुरी सामंत |
192 |
मानवी मेंदूच्या उत्क्रांतीमध्ये मांसाहाराची भूमिका |
सुभाष दोंदे |
193 |
दलितांच्या तळहातावर.... |
सुबोध मोरे |
194 |
दम लगा के... हैशा ! |
विठ्ठल पांडे |
195 |
असुरक्षित आरोग्य कर्मचारी |
निखिल श्रीवास्तव |
196 |
भाजपचे ओबीसी राजकारण |
यशवंत झगडे |
197 |
परीक्षेचे राजकारण : विध्यार्थ्यांचे खच्चीकरण |
डी. एन. मोरे |
198 |
आत्मघातकी निर्णय |
सतीश गोरे |
199 |
परीक्षा देऊ पण...... |
विराज पवार |
200 |
विद्यार्थ्यांचे हित वाऱ्यावर |
दिपाली पाटील |
201 |
बुडत्याचा पाय खोलात |
पियुष तोडकर |
202 |
आदिवासी विद्यार्थ्यांसमोरील आव्हाने |
संदीप मट्टामी |
203 |
अस्थिर करणारे राजकारण |
अमोल खरात |
204 |
जीवघेणा अट्टाहास |
शरयू परळकर |
205 |
परीक्षेची शिक्षा |
संपादकीय |
206 |
काश्मीरच्या कविता |
जयश्री आवदे |
207 |
कोरानाच्या कविता |
सुधाकर गायकवाड |
208 |
एक शिलेदार : बाबासाहेब कांबळे |
मधु मोहिते |
209 |
सहकार क्षेत्र : काही समज गैरसमज |
लखनसिंह कटरे |
210 |
आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार 3 |
दिलीप चव्हाण |
211 |
अमर्याद ऊर्मी स्वातंत्र्याची |
मुक्ता मनोहर |
212 |
शिक्षणाच्या मुक्त वाटा |
अंबुजा साळगांवकर |
213 |
मुस्लिमांचे प्रादेशिकरण |
कलीम अझीम |
214 |
इन्शुलिन प्रतिरोध आणि.... एक दृष्टिक्षेप |
सुभाष दोंदे |
215 |
काश्मीर : माहे ऑगस्ट सन २०२० |
स्वातीजा मनोरमा |
216 |
रामा, तू तिथं मला सापडणार नाहीस |
प्रताप मेहता |
217 |
दुसरे प्रजासत्ताक |
सुहास पळशीकर |
218 |
संपादकीय |
संपादकीय |
219 |
भास्कर चंदनशिव : भूमी आणि भूमिका |
केदार काळवणे |
220 |
प्रकाश प्रदूषण : दिव्याखाली अंधार |
सुनीती धारवाडकर |
221 |
काही आत्मवृत्ते आणि जिवंत हकिकती |
मुक्ता मनोहर |
222 |
शाश्वत विकासाची दिशा |
सम्राट कसबे |
223 |
पराकोटीची सॅनिटेशन घातकच |
सुभाष दोंदे |
224 |
कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे अंधारयुग |
मिलिंद कीर्ती |
225 |
जातीय भेदभावाचा परदेशी डंका |
अंकुश कदम |
226 |
जातीय भेदभावाचा परदेशी डंका |
अंकुश कदम |
227 |
परीक्षेचे राजकारण आणि संघराज्य पद्धतीतील असमतोल |
संपादकीय |
228 |
मा. फुलेविषयक संशोधनात मोलाची भर |
नागनाथ कोत्तापल्ले |
229 |
रानकवी लक्ष्मण लच्छमन्ना यांची कविता |
व्यंकटी पावडे |
230 |
लहान मुलं दिसत नाहीत भोवताली |
दिलीप चव्हाण |
231 |
सुरेश राघव यांच्या दोन कविता |
सुरेश राघव |
232 |
वाटेनेच |
डब्ल्यू कपूर |
233 |
स्थानिक टोळ्यांचं, इडियन्सचं काय झालं? |
मुक्ता मनोहर |
234 |
स्थानिक टोळ्यांचं, इडियन्सचं काय झालं? |
मुक्ता मनोहर |
235 |
आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार भाग ४ |
दिलीप चव्हाण |
236 |
कुमारन आशान कार्यकर्ता - महाकवी |
अरविंद सुरवाडे |
237 |
सफाई कामगारांचे योगदान |
प्रवीण घोडेस्वार |
238 |
सफाई कामगारांचे योगदान |
प्रवीण घोडेस्वार |
239 |
कोव्हिडकाळात रुग्णालयावर हातोडा |
सारा खान |
240 |
अगर हम नही उठे तो |
संपादकीय |
241 |
खरं तर रेप ही फारच फालतू बाब ! |
हेमंत राजोपाध्ये |
242 |
मुस्लिमांचे प्रादेशिकरण |
जयश्री आवदे |
243 |
दोन कविता |
अरुणचंद्र गवळी |
244 |
तीन कविता |
राजश्री देशपांडे |
245 |
उत्क्रांतीची वाट... 1 |
सुनीती धारवाडकर |
246 |
बेकनचा उठाव |
मुक्ता मनोहर |
247 |
वास्तव रेखाटणारा संवेदनशील कुंचला |
प्रकाश बुरटे |
248 |
धर्म की धर्मापलीकडे? संत रैदास आणि कबीर |
रवींद्र श्रावस्ती |
249 |
पीएम २.५ + कोव्हिड-19 |
सुभाष दोंदे |
250 |
न्यायाचे तत्त्व, लोकशाही व दलितांचा प्रश्न |
हर्षद भोसले |
251 |
प्रणव मुखर्जी आणि कॉंग्रेसची मूल्यव्यवस्था |
वैशाली पवार |
252 |
तीन अध्यादेश : शब्दांचे नवे बुडबुडे |
विजय जावंधिया |
253 |
ओरबाडली जाणारी माणसं |
शुभ्रजित सेन |
254 |
हा मुजोरपणा येतो कुठून? |
राजेंद्र गोणारकर |
255 |
श्रमिक विस्थापितांची दाहक कथा |
सुकुमार शिदोरे |
256 |
इलिनाचं जाणं |
वंदना सोनाळकर |
257 |
वास्तव रेखाटणारा संवेदनशील कुंचला |
प्रकाश बुरटे |
258 |
स्वातंत्र्याकडे वाटचाल |
मुक्ता मनोहर |
259 |
बहिष्कृत भारत : मुक्तीवादी राष्ट्रवादाचे चिंतन |
प्रबुद्ध मस्के |
260 |
कष्टकऱ्यांची व्यसनाधीनता |
विष्णू श्रीमंगले |
261 |
हाथरसचं कारस्थान |
आलोक राय |
262 |
नव्या जनुक कात्रीचे स्वागत, पण जपून ! |
सुनीती धारवाडकर |
263 |
मुक्तीवादी धर्मशास्त्र मार्क्सवादी आहे? |
अर्नेस्टो कार्देनाल |
264 |
केंद्रीकरणवादी माहिती-संप्रेषण तंत्रज्ञान |
गुरुमूर्ती काशीनाथन |
265 |
भेदभावाचं गणित आणि विज्ञान |
आर. रामानुजम |
266 |
बालशिक्षण आणि आरंभिक साक्षरता |
नीलेश निमकर |
267 |
शाळासंकुलांच्या आड विलिनीकरणाचा डाव |
भाऊसाहेब चासकर |
268 |
शाळाबाह्य विद्यार्थ्यांचे अधांतरी भवितव्य |
मालविका झा |
269 |
परिघी जनसमूहांच्या शिक्षणाची पाने कोरीच |
श्रीकांत काळोखे |
270 |
काही डाव, काही पेच |
अर्चना मेहेंदळे |
271 |
भाषा हाच संदेश |
माधुरी दीक्षित |
272 |
फारकतीचं धोरण |
अनिता रामपाल |
273 |
मूल्यमापन - राष्ट्रीय शिक्षण २०२० |
किशोर दारक |
274 |
पादूकाइथंच राहू देत... |
विजय चोरमारे |
275 |
तुडूंब वाहणाऱ्या जलाशयात.... |
मंदाकिनी पाटील |
276 |
खेळ |
अलका गांधी-असेरकर |
277 |
रूमणपेच |
पांडुरंग पुठ्ठेवाड |
278 |
ती फक्त किंचित हसते |
कमलेश महाले |
279 |
शहर ॲडमिट आहे... |
साईनाथ पाचारणे |
280 |
कसे विसरायचे |
जितेंद्र कुवर |
281 |
एकट्याच्या कविता |
संजय चौधरी |
282 |
बाराखडी |
नरेंद्र खैरनार |
283 |
आज कळून आलं |
प्रदीप सिद्धभट्टी |
284 |
निर्जन गहिऱ्या उन्हात काळ्या |
गिरीष सपाटे |
285 |
खेळ... |
भावना देशभ्रतार |
286 |
कळसूत्रान्त |
सचिन गरूड |
287 |
वाटेनेच |
कपूर वासनिक |
288 |
मनोगत |
गीतेश शिंदे |
289 |
काही कळले नाही |
प्रमोदकुमार अणेराव |
290 |
प्रलयकाळ म्हणतात तो हाच काय रे? |
पद्मरेखा धनकर |
291 |
नाव नसलेल्या स्वल्पविरामी संबंधात |
भगवान निळे |
292 |
सहा ऋतू तिन्ही काळ |
तुकाराम खिल्लारे |
293 |
कोरोना.. |
अशोक कोतवाल |
294 |
बंदूक... |
प्रशांत असनारे |
295 |
द्रौपदी हसिमुद्दिन शेख |
छाया कोरेगावकर |
296 |
रुस्तूमा |
सत्य कुटे |
297 |
कथा आणि टायपिस्ट |
साधना गोरे |
298 |
फिटर. |
राजेंद्र खैरनार |
299 |
चाकं.. |
माधव जाधव |
300 |
लाकडाची देवी |
सारिका उबाळे |
301 |
आईशप्पथ खरं सांगेन |
शिल्पा कांबळे |
302 |
मोईरोमला काय माहीत बलात्कार म्हणजे काय! |
सेलिना हुसेन |
303 |
इस्पिकची राणी |
अलेक्झांडर पुश्किन |
304 |
'परिवर्तनाचा वाटसरू'चा यंदाचा तेविसावा 'दिवाळी अंक' |
संपादकीय |
305 |
संभ्रमित |
वहशी सईद |
306 |
बेकार माणसाची कहाणी |
दीपक बुदकी |
307 |
शेक्सपिअर आणि प्लेग |
दीपक बोरगावे |
308 |
... आणि यू. एस. ए. जन्माला आला |
मुक्ता मनोहर |
309 |
समाजशास्त्रीय शैक्षणिक सत्ताव्यवहार |
प्रशांत आपटे |
310 |
जर्मन क्रांतीच्या शताब्दी निमित्ताने (पूर्वार्ध) |
अरुण सिन्हा |
311 |
आरोपी सुधा भारद्वाज |
छाया दातार |
312 |
दडपलेल्यांचं भू-राजकारण |
मोहम्मद जुनैद |
313 |
... आणि भारतातील सर्वहरा |
राजेश्वरी देशपांडे |
314 |
समाज चळवळीचा आदर्श |
शांताराम पंदेरे |
315 |
परिवर्तनाच्या वाटेवरील माझा प्रवास |
बाबा आढाव |
316 |
इन गुड फेथ, मिलॉर्ड |
संपादकीय |