| Sr. No | Article Title | Author Name | 
		
	
	| 1 | कविता | राजश्री देशपांडे | 
		
	
	| 2 | कविता | तुकाराम खिल्लारे | 
		
	
	| 3 | विदर्भातील स्त्री-लेखन | अरुणा सबाने | 
		
	
	| 4 | नव्वदनंतरची आंबेडकरी कविता | शिवराज गोपाळे | 
		
	
	| 5 | बदलाची दिशा | सुधीर वाडेकर | 
		
	
	| 6 | केंद्र सरकारचा जुगार | शेखर सोनाळकर | 
		
	
	| 7 | अयोध्या व ‘मोदीमॉन इफेक्ट’ | अर्जुन अप्पादुराई | 
		
	
	| 8 | विषम तडजोडीतून शांतता | सुहृत पार्थसारथी व गौतम भाटिया | 
		
	
	| 9 | विषम तडजोडीतून शांतता | सुहृत पार्थसारथी व गौतम भाटिया | 
		
	
	| 10 | अंत नव्हे, अंमळ अवसर | सुहास पळशीकर | 
		
	
	| 11 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 12 | संविधानिक नैतिकतेचे काय? | नितीश नवसागरे | 
		
	
	| 13 | इष्ट आदरांजलीपर स्मृतिग्रंथ | कुंदा लोखंडे व बाळासाहेब कांबळे | 
		
	
	| 14 | अमेरिकेतील स्त्रीवाद : शोध व बोध | स्नेहा गोळे | 
		
	
	| 15 | गोरखचं मरणं - आमचा मायदेश कोणता? | नारायण भोसले | 
		
	
	| 16 | या सततच्या दुष्काळाचे करायचे काय? | संपत काळे | 
		
	
	| 17 | भटक्या जमाती व जमातवाद | इनायत परदेशी | 
		
	
	| 18 | एनआरसीतील लिंगजन्य भेदभाव | अनन्या सिंग | 
		
	
	| 19 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 20 | पिंजरा : प्रेमपटच! | जयश्री आवदे | 
		
	
	| 21 | बिबट्या! | विनायक लष्कर | 
		
	
	| 22 | कैरोतील अरब वसंत ऋतू | माधव दातार | 
		
	
	| 23 | ‘आपली’ ग्रेटा आणि पुष्पपठार कास | अजित साळुंखे | 
		
	
	| 24 | कारसंस्कृती आणि सार्वजनिक अवकाश | विद्याधर दाते | 
		
	
	| 25 | नागरिकत्व दुरुस्ती कायद्याचा निषेध | Jayant Pawar | 
		
	
	| 26 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 27 | राज्यसंस्था आणि हिंसा | Watsaru Edit | 
		
	
	| 28 | भवतालातील भय अधोरेखित… | सीमा मुसळे | 
		
	
	| 29 | अर्वाचीन कवींचा काव्यविचार | विजय रैवतकर | 
		
	
	| 30 | रांड / छपाक समयी दिनचर्या | अनुपमा तिवाडी, मोहन देस | 
		
	
	| 31 | एक रेष आखलेली | प्रज्ञा दया पवार | 
		
	
	| 32 | कारसंस्कृती आणि सार्वजनिक अवकाश | विद्याधर दाते | 
		
	
	| 33 | अखेर विद्यार्थी का संतापले? | सतीशकुमार पडोळकर | 
		
	
	| 34 | नव्या संकटाची नांदी | विजय दिवाण | 
		
	
	| 35 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 36 | प्रतिकूलतेला चटके देण्याची हीच वेळ | Narayan Bhosale | 
		
	
	| 37 | नदीष्ट : लिव्हिंग ऑरगॅनिझम | यामिनी दळवी | 
		
	
	| 38 | कविता | सचिन गरुड, फैज अहमद फैज रूपांतर निमिष साने, अरुणचंद्र गवळी, भूषण रामटेके | 
		
	
	| 39 | कहाणी मेंढा नि पाचगावची | पुरुषोत्तम चांदेकर | 
		
	
	| 40 | मराठा स्त्रियांचे हिंदुत्व भान | मीनल जगताप | 
		
	
	| 41 | देऊरचा प्रतिकार आणि जातिसमाजाचा कॉमन सेन्स | उमेश बगाडे | 
		
	
	| 42 | नागरिकत्वविषयक दुरुस्तीचे वास्तव | सुहास पळशीकर | 
		
	
	| 43 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 44 | विकासनीतीची कठोर चिकित्सा | अनंत फडके | 
		
	
	| 45 | काव्यान्तर | भारती गोरे | 
		
	
	| 46 | स्त्री-पुरुष विषमता भारत व बांगला देश | सुरेंद्र जाधव | 
		
	
	| 47 | देऊरचा प्रतिकार आणि जातिसमाजाचा कॉमन सेन्स | उमेश बगाडे | 
		
	
	| 48 | नागरिकत्वविषयक दुरुस्तीचे वास्तव | सुहास पळशीकर | 
		
	
	| 49 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 50 | शाहीनबागच्या दिग्दर्शक महिला | Madhuri Dixit | 
		
	
	| 51 | शंकरभाऊ साठेंच्या चरित्राच्या निमित्ताने | रामप्रसाद तौर | 
		
	
	| 52 | मुक्तीच्या सम्यक मार्गावर | सरिता सोमाणी | 
		
	
	| 53 | हमरस्ता नाकारूनही पथदर्शी | स्वातीजा मनोरमा | 
		
	
	| 54 | खडकांच्या पोटात | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 55 | कविता | नीलिमा श्रुतिश्रवण | 
		
	
	| 56 | रांगेत उभंच नसलेलं बाईमाणूस | रोचना मोरे | 
		
	
	| 57 | दुर्लक्षित समाजशास्त्रज्ञ : कमला भसीन | संदीप चौधरी | 
		
	
	| 58 | पहिलं पाऊल | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 59 | स्त्रीकाव्याच्या आकलनाची चिकित्सा | कल्याणी झा | 
		
	
	| 60 | मूलतत्त्ववाद, जमातवाद आणि स्त्रिया | वंदना पलसाने | 
		
	
	| 61 | तिढा पॅलेस्टाईनचा | कल्पना दीक्षित | 
		
	
	| 62 | पुन्हा ८ मार्च! | Vrushali Magdum | 
		
	
	| 63 | विस्थापनाच्या कविता | Rishikesh Gangadharrao Deshmukh | 
		
	
	| 64 | विकासनीतीची कठोर चिकित्सा | अनंत फडके | 
		
	
	| 65 | काव्यान्तर | भारती गोरे | 
		
	
	| 66 | महंमद खडस आणि समाजवादाचे स्वप्न | गजानन खातू | 
		
	
	| 67 | अभ्यासक कार्यकर्ता | माधव दातार | 
		
	
	| 68 | कोण होता कोलंबस? | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 69 | रात्रंदिन आम्हा युद्धाचा प्रसंग | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 70 | सरकारविरोधी आंदोलने नि नागरिकांची जबाबदारी | सुहास पळशीकर | 
		
	
	| 71 | इपीडब्ल्यूची पानं | EPW Edit | 
		
	
	| 72 | जीवनचिंतनाचे नाटय | माधव पुटवाड | 
		
	
	| 73 | प्रांजळ आत्मकथन | नागनाथ कोत्तापल्ले | 
		
	
	| 74 | लैंगिकतेचा नवअध्यात्मवादी, समतावादी दृष्टिकोन | शरद नावरे | 
		
	
	| 75 | पाहुणा | सिद्राम पाटील | 
		
	
	| 76 | कोलंबसचं अमेरिका कनेक्शन | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 77 | भाईसाब, बेहेनजी आणि लक्स कोझी | अवधूत डोंगरे | 
		
	
	| 78 | शहरे आणि बदलते सांस्कृतिक आयाम | प्रशांत आपटे | 
		
	
	| 79 | मृदंगाचं मर्म नि वादकांचा धर्म | टी. एम. कृष्णा | 
		
	
	| 80 | कोरोना - स्वगते (कविता) | प्रदीप पुरंदरे | 
		
	
	| 81 | कोरोना एकटा आला नाही | विराज पवार | 
		
	
	| 82 | कोरोनानोंदी | संजीव चांदोरकर | 
		
	
	| 83 | कोरोनॉमिस्क व्यत्ययाचे अर्थशास्त्र | मंजूषा मुसमाडे | 
		
	
	| 84 | किती दिवस सोसायची ही घोर नाकेबंदी ? | संपादकीय | 
		
	
	| 85 | तर्कतीर्थांची साहित्यसंपदा | हिंदुराव पवार | 
		
	
	| 86 | दलित अभिव्यक्ती पल्याडची कविता | अंकुश कदम | 
		
	
	| 87 | संत कविता नि दलित जाणीव | नीता तोरणे | 
		
	
	| 88 | मोहल्ल्याच्या अस्तित्वाची पालवी ओरबाडताना | अजीम राही | 
		
	
	| 89 | कुलुपबंदीची वेळ | प्रज्ञा पवार | 
		
	
	| 90 | विज्ञानाची प्रशस्त वाट | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 91 | देशाची श्रीमंती कशात? | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 92 | दारा शुकोहचा सुफी वारसा | सरफराज अहमद | 
		
	
	| 93 | रफिक झकारिया: राष्ट्रवादी विचारवंत | रशिद जिलानी सय्यद | 
		
	
	| 94 | सीएएविरोधी आंदोलन आणि परशुराम | नारायण आशा आनंद | 
		
	
	| 95 | कोरोनानोंदी | संजीव चांदोरकर | 
		
	
	| 96 | अर्थव्यवस्थेवरील परिणाम | संजय तुपे | 
		
	
	| 97 | कोरोनाविरुद्ध लढाईत 'आयुष' | अंबुजा साळगावकर | 
		
	
	| 98 | कोरोनापर्व : काही विचार | सुकुमार शिदोरे | 
		
	
	| 99 | ...तुम्ही नक्की बोलू लागाल | आनंद तेलतुंबडे | 
		
	
	| 100 | कोरोनाचा 'सुवर्ण क्षण' | संपादकीय | 
		
	
	| 101 | भवतालाचे टक्क जागेपण जपणारी कविता | सरिता सोमाणी | 
		
	
	| 102 | आस्तिन के सॉंप | लखनसिंह कटरे | 
		
	
	| 103 | अस्वस्थ कविता | शशिकांत हिंगोणेकर | 
		
	
	| 104 | टाळाबंदी नी.... | सुनिता झाडे | 
		
	
	| 105 | जगण्याच्या शर्यतीत जीवाच्या आकांतानं | संघमित्रा खंडारे | 
		
	
	| 106 | एक एक पान गळताना | सुनिता डागा | 
		
	
	| 107 | शून्य भय | सारिका उबाळे | 
		
	
	| 108 | एक विधान | मिथुनचंद्र चौधरी | 
		
	
	| 109 | चिकाच्या आरशाआड..... | मेघनाथ कुलकर्णी | 
		
	
	| 110 | परिवर्तन व साहित्य | रमाकांत कराड | 
		
	
	| 111 | देशात वसाहतवाद्यांची वापसी? | मीनल कुष्टे | 
		
	
	| 112 | इंग्लंड आणि राणी एलिझाबेथची एंट्री | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 113 | कोरोना आणि जागतिक भांडवली अरिष्ट | बी. युवराज | 
		
	
	| 114 | पॅंडेमिक : नव्या भारताचा उदय? | मिलींद कीर्ती | 
		
	
	| 115 | कोरोना आणि घरेलू कामगारांची सद्यस्थिती | मनेष खटावे | 
		
	
	| 116 | ॲलोपॅथी आयुषवैद्यक आणि नीरक्षीरविवेक | अंबुजा साळगावकर | 
		
	
	| 117 | मानवमुक्तीचे स्वप्न | भारत पाटणकर | 
		
	
	| 118 | कोरोनापर्व : काही विचार | वृषाली मगदूम | 
		
	
	| 119 | शिक्षणाच्या परीक्षेची घडी | माधुरी दीक्षित | 
		
	
	| 120 | शिक्षणव्यवस्थेसमोर नवी आव्हाने | संपादकीय | 
		
	
	| 121 | आलेख | अरुणचंद्र गवळी | 
		
	
	| 122 | खरोखरच... मला लाज वाटते | लोकनाथ यशवंत | 
		
	
	| 123 | नितळ, पारदर्शक स्वकथन टिपंवणी | आशालता कांबळे | 
		
	
	| 124 | भारतीय भाषांसमोरील समस्या व भवितव्य | नीतिन आरेकर | 
		
	
	| 125 | इंग्लंडची सरशी व नागरी वसाहतींचा आरंभ | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 126 | कोव्हिड १९चा अभियांत्रिकी शिक्षणावर परिणाम | प्रियांका कुलकर्णी | 
		
	
	| 127 | शिक्षणाच्या परीक्षेची घडी | माधुरी दीक्षित | 
		
	
	| 128 | भारत व चीन यांच्या विकासाचे वास्तव | चंद्रकांत केळकर | 
		
	
	| 129 | जागतिक आरोग्य संघटनेचे योगदान | सुधीर वाडेकर | 
		
	
	| 130 | अमेरिकेचे घातक वंशवादी प्रारूप | महादेव खुडे | 
		
	
	| 131 | व्हिएतनामचे यशस्वी प्रारूप | अजित साळुंखे | 
		
	
	| 132 | साखर उद्योग आणि कोरोना | सतीश देशमुख | 
		
	
	| 133 | जागतिकीकरणावर प्रश्नचिन्ह | देवीदास तुळजापूरकर | 
		
	
	| 134 | कोरोनाचे संभाव्य आर्थिक परिणाम आणि दिशा | समित माहोरे | 
		
	
	| 135 | कोरोनानंतरची अर्थव्यवस्था | श्रीनिवास खांदेवाले | 
		
	
	| 136 | चेकपोस्टच्या पोस्ट | विठ्ठल पांडे | 
		
	
	| 137 | कोरोना आणि पायी चालणार | संपादकीय | 
		
	
	| 138 | एक मे रोजीच्या कव्हरसंबंधी | अवधूत डोंगरे | 
		
	
	| 139 | अभिव्यक्ती स्वातंत्र्याच्या पुरस्कारासाठी | गणेश राऊत | 
		
	
	| 140 | गूढ वास्तव कथा | प्रभू राजगडकर | 
		
	
	| 141 | कोरोना बिन बलायो पामणो | संतोष राठोड | 
		
	
	| 142 | स्वप्नांचे बांधकाम करणारा कवी | अरुण तीनगोटे | 
		
	
	| 143 | मे- फ्लॉवर बायबल आणि नव्या जगाकडे... | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 144 | स्मार्टफोनची जैवकंपने | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 145 | 1920ची बहिष्कृत वर्ग परिषद | सुरेश साबळे | 
		
	
	| 146 | आदिवासीची कुंपणबंदी | मुक्ता आंभेरे | 
		
	
	| 147 | शिक्षनाचे झूम बराबर | भवानी शंकर नायक | 
		
	
	| 148 | मजूरवेणा २६ जुलैपर्यंत ते आपल्याखिजगणतीतही नव्हते... | पी. साईनाथ | 
		
	
	| 149 | सावध ऐका... | डॉ. सचिन सरोदे | 
		
	
	| 150 | पत्रव्यवहार | सचिन गरुड | 
		
	
	| 151 | दखलपात्र 'मुनादी' | किरण डोंगरदिवे | 
		
	
	| 152 | भारतीयत्वाच्या जाणिवेचा वेदनादायी पुनर्शोध | अविनाश वर्धन | 
		
	
	| 153 | रस्ते वेदनेनं विव्हळत आहेत | अशोक इंगळे | 
		
	
	| 154 | मजुरांच्या कविता : काही तुकडे | तुषार पाटील | 
		
	
	| 155 | कबीरन | सूरज बडत्या | 
		
	
	| 156 | माणूस मूलतः अविवेकीच असतो! | रावसाहेब कसबे | 
		
	
	| 157 | सीटी अपॉन हिल | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 158 | सम्यक ध्वनी | संजय मोहड | 
		
	
	| 159 | पितृसत्त्तेच्या विळख्यात कुटुंबव्यवस्था | प्रवीण घोडेस्वार | 
		
	
	| 160 | अभिजन उदारमतवादी व फॅसिझम | बी युवराज | 
		
	
	| 161 | विधान परिषद निवडणुकीच्या निमित्ताने | संतोष कायंदे | 
		
	
	| 162 | वर्गखोल्यांची विलापिका | मीना पिल्लई | 
		
	
	| 163 | शैक्षणिक संकुलाचे महत्त्व | सतीश देशपांडे | 
		
	
	| 164 | दोन हात या विषाणूशी पण करुयात | सुप्रिया गायकवाड | 
		
	
	| 165 | बाबुरावाचा तुकडा | अविनाश गायकवाड | 
		
	
	| 166 | गंगामायचं निवेदन | मनोहर जाधव | 
		
	
	| 167 | तेव्हाची गोष्ट | स्मिता पाटील | 
		
	
	| 168 | रानडे आणि भांडारकर : काही नवे पैलू | जास्वंदी बांबूरकर | 
		
	
	| 169 | मिडल कॉलनीज अशा कशा मध्येच? | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 170 | निद्रेचे लयबद्ध आवर्तने : झोपेचे जैवचक्र | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 171 | प्रवेग : प्रवेगवादी राजकारणाचा जाहिरनामा | विप्लव आनंद विंगकर | 
		
	
	| 172 | कोरोना व सार्वजनिक विवेकाचा सत्वभ्रंश | हर्षद भोसले | 
		
	
	| 173 | 21 व्या शतकातील भांडवली पद्धती, अरिष्टे, व कारणमीमांसा | चंद्रकांत केळकर | 
		
	
	| 174 | पितृसत्ताक मानसिकतेतून घडलेली एकतर्फी प्रेमातील हिंसा | स्वर्णमाला मस्के | 
		
	
	| 175 | कोरोनाच्या काळात घ्यावयाची काळजी | संपादकीय | 
		
	
	| 176 | मानवी नात्याचे प्रभावी चित्रण करणाऱ्या कथा | रंजना वांबुरकर | 
		
	
	| 177 | इम्तियाज धारकर यांची कविता.... | दीपक बोरगावे | 
		
	
	| 178 | योगिनी राऊळ यांच्या कविता | योगिनी राऊळ | 
		
	
	| 179 | पर्व गुलामगिरीचे - कोण वीस माणसं?.. | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 180 | याद रहे हमे बिमारी से लडना हैं | विठ्ठल पांडे | 
		
	
	| 181 | ऑनलाईन शिक्षणात स्त्रियाच वंचित? | प्रवीण घोडेस्वार | 
		
	
	| 182 | आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार | दिलीप चव्हाण | 
		
	
	| 183 | कोरोनाचा काळ नि नवऱ्याचा भार | अनामिका 2 | 
		
	
	| 184 | नवऱ्यासोबत लॉक झालेल्या डाऊन बायका.... | अनामिका 1 | 
		
	
	| 185 | अंधारातली दुसरी महामारी | संपादकीय | 
		
	
	| 186 | कोव्हिड १९ आणि लिंगभाव : कोरोनाने उघडली झाकली मूठ | स्वातीजा मनोरमा | 
		
	
	| 187 | पावसाच्या निबंधातून वाहून गेलेली गोष्ट | महेंद्र लंकेश्वर | 
		
	
	| 188 | निसर्गाचे मूलभूत धडे | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 189 | गुलामगिरीच्या मजबूत साखळ्या | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 190 | आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार | दिलीप चव्हाण | 
		
	
	| 191 | कुटुंबाचे चिकित्सक समाजशास्त्र विस्तारताना | मयुरी सामंत | 
		
	
	| 192 | मानवी मेंदूच्या उत्क्रांतीमध्ये मांसाहाराची भूमिका | सुभाष दोंदे | 
		
	
	| 193 | दलितांच्या तळहातावर.... | सुबोध मोरे | 
		
	
	| 194 | दम लगा के... हैशा ! | विठ्ठल पांडे | 
		
	
	| 195 | असुरक्षित आरोग्य कर्मचारी | निखिल श्रीवास्तव | 
		
	
	| 196 | भाजपचे ओबीसी राजकारण | यशवंत झगडे | 
		
	
	| 197 | परीक्षेचे राजकारण : विध्यार्थ्यांचे खच्चीकरण | डी. एन. मोरे | 
		
	
	| 198 | आत्मघातकी निर्णय | सतीश गोरे | 
		
	
	| 199 | परीक्षा देऊ पण...... | विराज पवार | 
		
	
	| 200 | विद्यार्थ्यांचे हित वाऱ्यावर | दिपाली पाटील | 
		
	
	| 201 | बुडत्याचा पाय खोलात | पियुष तोडकर | 
		
	
	| 202 | आदिवासी विद्यार्थ्यांसमोरील आव्हाने | संदीप मट्टामी | 
		
	
	| 203 | अस्थिर करणारे राजकारण | अमोल खरात | 
		
	
	| 204 | जीवघेणा अट्टाहास | शरयू परळकर | 
		
	
	| 205 | परीक्षेची शिक्षा | संपादकीय | 
		
	
	| 206 | काश्मीरच्या कविता | जयश्री आवदे | 
		
	
	| 207 | कोरानाच्या कविता | सुधाकर गायकवाड | 
		
	
	| 208 | एक शिलेदार : बाबासाहेब कांबळे | मधु मोहिते | 
		
	
	| 209 | सहकार क्षेत्र : काही समज गैरसमज | लखनसिंह कटरे | 
		
	
	| 210 | आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार 3 | दिलीप चव्हाण | 
		
	
	| 211 | अमर्याद ऊर्मी स्वातंत्र्याची | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 212 | शिक्षणाच्या मुक्त वाटा | अंबुजा साळगांवकर | 
		
	
	| 213 | मुस्लिमांचे प्रादेशिकरण | कलीम अझीम | 
		
	
	| 214 | इन्शुलिन प्रतिरोध आणि.... एक दृष्टिक्षेप | सुभाष दोंदे | 
		
	
	| 215 | काश्मीर : माहे ऑगस्ट सन २०२० | स्वातीजा मनोरमा | 
		
	
	| 216 | रामा, तू तिथं मला सापडणार नाहीस | प्रताप मेहता | 
		
	
	| 217 | दुसरे प्रजासत्ताक | सुहास पळशीकर | 
		
	
	| 218 | संपादकीय | संपादकीय | 
		
	
	| 219 | भास्कर चंदनशिव : भूमी आणि भूमिका | केदार काळवणे | 
		
	
	| 220 | प्रकाश प्रदूषण : दिव्याखाली अंधार | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 221 | काही आत्मवृत्ते आणि जिवंत हकिकती | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 222 | शाश्वत विकासाची दिशा | सम्राट कसबे | 
		
	
	| 223 | पराकोटीची सॅनिटेशन घातकच | सुभाष दोंदे | 
		
	
	| 224 | कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे अंधारयुग | मिलिंद कीर्ती | 
		
	
	| 225 | जातीय भेदभावाचा परदेशी डंका | अंकुश कदम | 
		
	
	| 226 | जातीय भेदभावाचा परदेशी डंका | अंकुश कदम | 
		
	
	| 227 | परीक्षेचे राजकारण आणि संघराज्य पद्धतीतील असमतोल | संपादकीय | 
		
	
	| 228 | मा. फुलेविषयक संशोधनात मोलाची भर | नागनाथ कोत्तापल्ले | 
		
	
	| 229 | रानकवी लक्ष्मण लच्छमन्ना यांची कविता | व्यंकटी पावडे | 
		
	
	| 230 | लहान मुलं दिसत नाहीत भोवताली | दिलीप चव्हाण | 
		
	
	| 231 | सुरेश राघव यांच्या दोन कविता | सुरेश राघव | 
		
	
	| 232 | वाटेनेच | डब्ल्यू कपूर | 
		
	
	| 233 | स्थानिक टोळ्यांचं, इडियन्सचं काय झालं? | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 234 | स्थानिक टोळ्यांचं, इडियन्सचं काय झालं? | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 235 | आपत्ती : स्त्रियांसाठी दुहेरी मार भाग ४ | दिलीप चव्हाण | 
		
	
	| 236 | कुमारन आशान कार्यकर्ता - महाकवी | अरविंद सुरवाडे | 
		
	
	| 237 | सफाई कामगारांचे योगदान | प्रवीण घोडेस्वार | 
		
	
	| 238 | सफाई कामगारांचे योगदान | प्रवीण घोडेस्वार | 
		
	
	| 239 | कोव्हिडकाळात रुग्णालयावर हातोडा | सारा खान | 
		
	
	| 240 | अगर हम नही उठे तो | संपादकीय | 
		
	
	| 241 | खरं तर रेप ही फारच फालतू बाब ! | हेमंत राजोपाध्ये | 
		
	
	| 242 | मुस्लिमांचे प्रादेशिकरण | जयश्री आवदे | 
		
	
	| 243 | दोन कविता | अरुणचंद्र गवळी | 
		
	
	| 244 | तीन कविता | राजश्री देशपांडे | 
		
	
	| 245 | उत्क्रांतीची वाट... 1 | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 246 | बेकनचा उठाव | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 247 | वास्तव रेखाटणारा संवेदनशील कुंचला | प्रकाश बुरटे | 
		
	
	| 248 | धर्म की धर्मापलीकडे? संत रैदास आणि कबीर | रवींद्र श्रावस्ती | 
		
	
	| 249 | पीएम २.५ + कोव्हिड-19 | सुभाष दोंदे | 
		
	
	| 250 | न्यायाचे तत्त्व, लोकशाही व दलितांचा प्रश्न | हर्षद भोसले | 
		
	
	| 251 | प्रणव मुखर्जी आणि कॉंग्रेसची मूल्यव्यवस्था | वैशाली पवार | 
		
	
	| 252 | तीन अध्यादेश : शब्दांचे नवे बुडबुडे | विजय जावंधिया | 
		
	
	| 253 | ओरबाडली जाणारी माणसं | शुभ्रजित सेन | 
		
	
	| 254 | हा मुजोरपणा येतो कुठून? | राजेंद्र गोणारकर | 
		
	
	| 255 | श्रमिक विस्थापितांची दाहक कथा | सुकुमार शिदोरे | 
		
	
	| 256 | इलिनाचं जाणं | वंदना सोनाळकर | 
		
	
	| 257 | वास्तव रेखाटणारा संवेदनशील कुंचला | प्रकाश बुरटे | 
		
	
	| 258 | स्वातंत्र्याकडे वाटचाल | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 259 | बहिष्कृत भारत : मुक्तीवादी राष्ट्रवादाचे चिंतन | प्रबुद्ध मस्के | 
		
	
	| 260 | कष्टकऱ्यांची व्यसनाधीनता | विष्णू श्रीमंगले | 
		
	
	| 261 | हाथरसचं कारस्थान | आलोक राय | 
		
	
	| 262 | नव्या जनुक कात्रीचे स्वागत, पण जपून ! | सुनीती धारवाडकर | 
		
	
	| 263 | मुक्तीवादी धर्मशास्त्र मार्क्सवादी आहे? | अर्नेस्टो कार्देनाल | 
		
	
	| 264 | केंद्रीकरणवादी माहिती-संप्रेषण तंत्रज्ञान | गुरुमूर्ती काशीनाथन | 
		
	
	| 265 | भेदभावाचं गणित आणि विज्ञान | आर. रामानुजम | 
		
	
	| 266 | बालशिक्षण आणि आरंभिक साक्षरता | नीलेश निमकर | 
		
	
	| 267 | शाळासंकुलांच्या आड विलिनीकरणाचा डाव | भाऊसाहेब चासकर | 
		
	
	| 268 | शाळाबाह्य विद्यार्थ्यांचे अधांतरी भवितव्य | मालविका झा | 
		
	
	| 269 | परिघी जनसमूहांच्या शिक्षणाची पाने कोरीच | श्रीकांत काळोखे | 
		
	
	| 270 | काही डाव, काही पेच | अर्चना मेहेंदळे | 
		
	
	| 271 | भाषा हाच संदेश | माधुरी दीक्षित | 
		
	
	| 272 | फारकतीचं धोरण | अनिता रामपाल | 
		
	
	| 273 | मूल्यमापन - राष्ट्रीय शिक्षण २०२० | किशोर दारक | 
		
	
	| 274 | पादूकाइथंच राहू देत... | विजय चोरमारे | 
		
	
	| 275 | तुडूंब वाहणाऱ्या जलाशयात.... | मंदाकिनी पाटील | 
		
	
	| 276 | खेळ | अलका गांधी-असेरकर | 
		
	
	| 277 | रूमणपेच | पांडुरंग पुठ्ठेवाड | 
		
	
	| 278 | ती फक्त किंचित हसते | कमलेश महाले | 
		
	
	| 279 | शहर ॲडमिट आहे... | साईनाथ पाचारणे | 
		
	
	| 280 | कसे विसरायचे | जितेंद्र कुवर | 
		
	
	| 281 | एकट्याच्या कविता | संजय चौधरी | 
		
	
	| 282 | बाराखडी | नरेंद्र खैरनार | 
		
	
	| 283 | आज कळून आलं | प्रदीप सिद्धभट्टी | 
		
	
	| 284 | निर्जन गहिऱ्या उन्हात काळ्या | गिरीष सपाटे | 
		
	
	| 285 | खेळ... | भावना देशभ्रतार | 
		
	
	| 286 | कळसूत्रान्त | सचिन गरूड | 
		
	
	| 287 | वाटेनेच | कपूर वासनिक | 
		
	
	| 288 | मनोगत | गीतेश शिंदे | 
		
	
	| 289 | काही कळले नाही | प्रमोदकुमार अणेराव | 
		
	
	| 290 | प्रलयकाळ म्हणतात तो हाच काय रे? | पद्मरेखा धनकर | 
		
	
	| 291 | नाव नसलेल्या स्वल्पविरामी संबंधात | भगवान निळे | 
		
	
	| 292 | सहा ऋतू तिन्ही काळ | तुकाराम खिल्लारे | 
		
	
	| 293 | कोरोना.. | अशोक कोतवाल | 
		
	
	| 294 | बंदूक... | प्रशांत असनारे | 
		
	
	| 295 | द्रौपदी हसिमुद्दिन शेख | छाया कोरेगावकर | 
		
	
	| 296 | रुस्तूमा | सत्य कुटे | 
		
	
	| 297 | कथा आणि टायपिस्ट | साधना गोरे | 
		
	
	| 298 | फिटर. | राजेंद्र खैरनार | 
		
	
	| 299 | चाकं.. | माधव जाधव | 
		
	
	| 300 | लाकडाची देवी | सारिका उबाळे | 
		
	
	| 301 | आईशप्पथ खरं सांगेन | शिल्पा कांबळे | 
		
	
	| 302 | मोईरोमला काय माहीत बलात्कार म्हणजे काय! | सेलिना हुसेन | 
		
	
	| 303 | इस्पिकची राणी | अलेक्झांडर पुश्किन | 
		
	
	| 304 | 'परिवर्तनाचा वाटसरू'चा यंदाचा तेविसावा 'दिवाळी अंक' | संपादकीय | 
		
	
	| 305 | संभ्रमित | वहशी सईद | 
		
	
	| 306 | बेकार माणसाची कहाणी | दीपक बुदकी | 
		
	
	| 307 | शेक्सपिअर आणि प्लेग | दीपक बोरगावे | 
		
	
	| 308 | ... आणि यू. एस. ए. जन्माला आला | मुक्ता मनोहर | 
		
	
	| 309 | समाजशास्त्रीय शैक्षणिक सत्ताव्यवहार | प्रशांत आपटे | 
		
	
	| 310 | जर्मन क्रांतीच्या शताब्दी निमित्ताने (पूर्वार्ध) | अरुण सिन्हा | 
		
	
	| 311 | आरोपी सुधा भारद्वाज | छाया दातार | 
		
	
	| 312 | दडपलेल्यांचं भू-राजकारण | मोहम्मद जुनैद | 
		
	
	| 313 | ... आणि भारतातील सर्वहरा | राजेश्वरी देशपांडे | 
		
	
	| 314 | समाज चळवळीचा आदर्श | शांताराम पंदेरे | 
		
	
	| 315 | परिवर्तनाच्या वाटेवरील माझा प्रवास | बाबा आढाव | 
		
	
	| 316 | इन गुड फेथ, मिलॉर्ड | संपादकीय |